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नरकासुर वध, सौंदर्य और पाप से मुक्ति का पर्व — आज देशभर में धूमधाम से मनाई जा रही रूप चौदस, छोटी दिवाली के दीपों से जगमगाए घर-आंगन

 भूषण गुरंग, ज़िला ब्यूरो चम्बा।

अखण्ड भारत दर्पण(ABD) न्यूज।

दीपों के महापर्व दीपावली की खुशियां अपने चरम पर हैं। पांच दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व का दूसरा दिन रूप चौदस, जिसे नरक चतुर्दशी, छोटी दिवाली, या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है, आज देशभर में श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन असुरता पर देवत्व की विजय, सौंदर्य की साधना और पाप से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।


नरकासुर वध से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध किया था। नरकासुर ने देवताओं, ऋषियों और मानवों पर अत्याचार कर 16,100 कन्याओं को अपनी कैद में रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से उसका वध कर उन कन्याओं को मुक्त कराया। इसी कारण यह दिन नरक चतुर्दशी या रूप चौदस कहलाता है, जो अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

कहा जाता है कि इस वध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण स्नान कर प्रसन्न होकर घर लौटे, तब लोगों ने उनके स्वागत में दीप प्रज्ज्वलित किए। तब से ही इस दिन दीप जलाने की परंपरा चली आ रही है।

 दूसरी कथा: राजा रंति देव और पाप से मुक्ति का व्रत

रूप चौदस से जुड़ी एक अन्य कथा राजा रंति देव की है। कथा के अनुसार, राजा रंति देव अपने पिछले कर्मों से दुखी होकर पापों के प्रायश्चित का मार्ग खोज रहे थे। एक दिन उन्हें एक मुनि ने उपदेश दिया कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत कर स्नान करें, जिससे नर्क के भय से मुक्ति मिलेगी। राजा ने वैसा ही किया और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।

तभी से यह दिन पापों के प्रायश्चित और आत्मशुद्धि का पर्व बन गया। लोग इस दिन व्रत रखते हैं, स्नान करते हैं और दीपदान के माध्यम से यमराज की आराधना करते हैं ताकि उन्हें मृत्यु और पाप के भय से मुक्ति मिले।

सौंदर्य और शुद्धि की परंपरा

रूप चौदस के दिन सौंदर्य और आंतरिक शुद्धता का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले तिल के तेल से शरीर पर मालिश (अभ्यंग स्नान) कर तिल मिले जल से स्नान करने से रूप-सौंदर्य बढ़ता है और पापों का नाश होता है।

पुराणों के अनुसार —

“तिल तेलाभ्यंगेन रूपं लभते नरः।”

अर्थात जो व्यक्ति रूप चौदस के दिन तिल तेल से स्नान करता है, वह सौंदर्य, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति करता है।

मान्यता है कि तिल के तेल में मां लक्ष्मी और तिल वाले जल में भगवान विष्णु का वास होता है। इस कारण स्नान के बाद आरती और दीपदान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

 यम दीपक का महत्व

रूप चौदस के दिन यम दीपदान की परंपरा विशेष रूप से निभाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन सायंकाल प्रदोषकाल (शाम 5:47 से 6:13 बजे) के बीच सरसों के तेल का दीया दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाया जाता है।

यह दीप यमराज को समर्पित होता है और इसे यम दीपक कहा जाता है।

ऐसा करने से व्यक्ति को यम यातना से मुक्ति, अकाल मृत्यु से रक्षा और दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है।

 “दक्षिणामुखं दीपनं यमराजाय नमः।”

इस मंत्र के साथ दीप जलाने से व्यक्ति के पितरों को भी तृप्ति मिलती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

 विशेष उपाय और दीपदान परंपरा

इस दिन घर के प्रत्येक कोने में दीप प्रज्ज्वलित करने का विधान है। गाय के गोबर से बने दीये जलाना अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि यह पर्यावरण शुद्ध करता है और आध्यात्मिक शांति देता है।

चार बाती वाले दीये में “ओं यमाय नमः” मंत्र का जप करते हुए दीप जलाने से भय, प्रेतबाधा और अकाल मृत्यु का नाश होता है।

रात्रि में 14 दीपक जलाने की परंपरा भी है —

एक मुख्य द्वार पर

एक रसोई में

एक तुलसी के पास

एक घर की छत पर

एक जल स्रोत के पास और शेष आंगन या खिड़कियों पर

कहा जाता है कि ये दीप घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर करते हैं और सौभाग्य, धन एवं शांति का प्रकाश फैलाते हैं।

 देवी-देवताओं की पूजा

रूप चौदस के दिन भगवान श्रीकृष्ण, मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु और हनुमान जी की पूजा की जाती है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में यह दिन काली चौदस के रूप में मां काली की आराधना को समर्पित है।

वहीं उत्तर भारत में लोग इस दिन हनुमान पूजा करते हैं, क्योंकि दीपावली की रात्रि में श्रीराम जी के आगमन से पहले भगवान हनुमान ने अयोध्या में दीप जलाए थे।

इसलिए श्रद्धालु इस दिन हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ कर अंधकार और भय से रक्षा की कामना करते हैं।

 छोटी दिवाली का सांस्कृतिक संदेश

रूप चौदस को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। यह दिन प्रकाश पर्व की पूर्व संध्या होता है, जो अगले दिन बड़ी दिवाली का मार्ग प्रशस्त करता है।

जहां बड़ी दिवाली पर घर में अनेकों दीपक जगमगाते हैं, वहीं छोटी दिवाली की दीपमालाएं अपेक्षाकृत कम होती हैं।

यह संदेश देती हैं कि —

 “प्रकाश का प्रारंभ विनम्रता से होता है।”

छोटी दीपमालाएं हमें सिखाती हैं कि जीवन में बड़े प्रकाश (सफलता) से पहले आंतरिक प्रकाश (शुद्धि और विनम्रता) का होना आवश्यक है।

 सामाजिक और पारिवारिक उल्लास

आनी, कुल्लू, बंजार और आस-पास के क्षेत्रों में सुबह से ही श्रद्धालु तिल तेल स्नान और पूजा-पाठ में व्यस्त हैं। महिलाएं घरों की चौखट पर रंगोली सजा रही हैं और शाम को दीपदान की तैयारी कर रही हैं।

बाजारों में दीप, मिठाइयों और पूजा सामग्री की रौनक है। बच्चों में उत्साह और बड़ों में श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।

रात ढलते ही जब घर-आंगन दीपों की रोशनी से नहा उठेंगे, तो मानो नरकासुर पर श्रीकृष्ण की विजय का प्रकाश फिर से जगमगा उठेगा।

 निष्कर्ष: आत्मशुद्धि और प्रकाश का पर्व

रूप चौदस केवल स्नान या सौंदर्य का दिन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, पाप-क्षालन और आंतरिक प्रकाश की साधना का अवसर है।यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि —

 “जब भीतर का अंधकार मिटता है, तभी बाहर का दीप सच्चा प्रकाश फैलाता है।”

रूप चौदस की दीपमालाएं केवल घरों को नहीं, बल्कि आत्मा के हर कोने को प्रकाशित करने का संदेश देती हैं।



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